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एक कशिश कुछ कर गुजरने की 

एक कशिश कुछ कर गुजरने की 

एक कशिश यहां अपना मका बनाने की।


क्या हुआ अगर तू आज गिर गया

अभी तो हिम्मत बची है फिर से खड़ा उठ हो जाने की।





ऐसे ना यूं तू हार एक नया सवेरा फिर आएगा 

क्या हुआ अगर वो आज तुझ पर हंसा है पर कल वक्त बदलकर फिर तेरा आएगा।


अपने सपनों पर तू रख यकीन और तेरे आज की मेहनत ही तेरा कल बनाएगा 

तू तिनका तिनका जोड़ कर एक खूबसूरत घर बनाएगा।


माना कि रास्ते कठिन है पर तेरा जुनून भी तो ना कम है 

तो इन सभी चट्टानों से टकराकर आगे निकल जाएगा।


क्या हुआ तेरे तेरा आज तुझे देखकर बुरा मान गया 

अभी तो सांसे कुछ बची है इस बंजर जमीन पर पेड़ उगाने की।


सुना है ना जीते तो वही है जो मैदान छोड़कर ना जाएं 

अभी तो एक कशिश बची है मंजिल को फतह कर जाने की।।


Pradeep Kumar

 
 
 

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