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आत्मनिर्भरता!






जागतिक स्तरपर मानवी मन का सुधार चल रहा है। कोरोना कोई आपदा नही है। अपनी भुलोंका प्रायश्चित लेने की विधा है।

भौतिक सुखोंकी लालसा में उलझा मानवी मन दुसरोंके हित की परवाह किये बिना अपनी ही बेताल में आगे निकल रहा था।


आज ठहराव सा आ गया। जिंदगी थमसी गयी है।अकारण भय की भावनायें बढ़ रही है कि जो कोरोना से भी अधिक मात्रा में गंभीर है। समस्यायें बढ़ रही है।

निराशता पनप रही है। पर डरने की भावना को मन से प्रयत्नपुर्वक  हटाना ही मानवी धर्म है।

जब भी नैराश्य आने लगे। बादलोंसे ढके आसमाँ को देखे। खुली साँस ले।

पंछीओंको एक मुठ्ठी अनाज के लिए आसमाँ में छलांग लगाते हुए देखे।

सृष्टी का हर जीव आत्मनिर्भर होते हुए जीवनावश्यक सुविधा में बेहद खुश है। आसमाँ चहक रहा है।

परिवर्तन ही सृष्टी का नियम है। उसे accept करे।हारे नही।

डटें रहे।

आप याने हम सभी ईश्वर के लाडले है। पर मर्यादाओंको भुले नही। सावधानी बरतें।


हर हालात में खुशी को प्रधानता दे। तो all is well.nothing is permanent.


-रत्नप्रभा

 
 
 

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